पोहरी जनपद की ग्राम पंचायत बूढ़दा में प्रधानमंत्री जन मन आवास के क्रम में बनाई गई कालोनी में बुधवार को राज्यपाल मंगू भाई पटेल ने 34 आवासों में आदिवासियों को गृह प्रवेश करवाया। शहरों की तर्ज पर बनाई गई इस कालोनी की जमीनी हकीकत और आदिवासियों की खुशी से रूबरू होने के लिए हमारी टीम गुरूवार को बूढ़दा कालोनी पहुंची। यहां जाकर देखा तो बाहर से चमक रहे मकानों में से कई मकान अंदर से अधूरे पड़े हुए थे। मकानों में न तो प्लास्टर था और न ही बिजली। वहीं जिस मधुआ आदिवासी नामक महिला के यहां राज्यपाल ने सह भोज किया। उस मकान में जरूर टाइल्स, रंग, राोगन के अलावा, बड़ी एलईडी लाइट आदि लगी थी। हालांकि मधुआ आदिवासी गांव में नहीं थी, मकान पर ताला लटका हुआ था। कालोनी सहित गांव में उसका पता करने पर जानकारी मिली कि वह दो जून की रोटी की जुगाड़ में किसी और के खेत पर मजदूरी करने के लिए गई है। कालोनी के लोगों ने बताया कि कालोनी में सिर्फ तीन चार परिवार ही रहते हैं, शेष लोग तो अभी गांव में ही रह रहे हैं। ऐसे में राज्यपाल द्वारा लगाया गया गृह प्रवेश सिर्फ औपचारिकता मात्र नजर आया।
एक ही दिन में उखड़ गई ओपन जिम -
राज्यपाल मंगू भाई पटेल से आदिवासी बच्चों के लिए लगाई गई ओपन जिम की कहानी बताते हुए ग्रामीणों का कहना था कि यह जिम तो बुधवार की सुबह ही राज्यपाल के गांव पहुंचने से पहले लगाई गई थी। यह जिम गुरूवार को ही उखड़ गई और पूरे उपकरण हिलते डुलते नजर आए।
ट्रालियों से डस्ट भर ले गए गांव के दबंग -
गांव की महिला मीरा आदिवासी ने बताया कि कालोनी में डालने के लिए डस्ट आई थी। वह डस्ट गुरूवार की सुबह ही गांव के कुछ दबंग जेसीबी की मदद से ट्रेक्टर-ट्रालियों में भर कर ले गए। महिला का कहना था कि जब डस्ट कालोनी के लिए आई है तो उसे भरकर आखिर गांव में क्यों ले जाया जा रहा है।
मजदूर के घर पकवान पर नहीं था कोई जबाव -
टीम ने जब मधुआ आदिवासी के घर पर राज्यपाल को परोसे गए पकवान की हकीकत जानने के लिए उसकी मां गांव की सरपंच बसंती आदिवासी से बात की तो बसंती ने बताया कि मधुआ 250 रुपये रोज की मजदूरी करती है। जब बसंती से पूछा गया कि कल राज्पाल को खाने में क्या-क्या परोसा गया था तो वह उसका भी जबाव नहीं दे पाई। मधुआ के बेटे की कमजोर हालत को देखकर जब बसंती से बात की गई तो उसका कहना था कि आदिवासी के घर पर भाजी और रोटी के अलावा खाने को रखा क्या है। मधुआ के पिता प्रभु आदिवासी ने बताया कि पूरा घर जब लगा रहता है तब मुश्किल से पेट भरने की व्यवस्था कर पाते हैं। परिवार राज्यपाल को परोसे गए पकवानों की थाली के संबंध में कोई उचित जबाव नहीं दे सके। हालांकि ग्रामीण सूत्रों ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया कि पूरा प्रबंध पंचायत के अधिकारियों ने किया था। खाना सिर्फ मधुआ के घर खाया था।
इनका कहना है -
-जो मकान अधूरे हैं, उन्हें कराने के लिए वह वहां रहते-रहते कम्पलीट कराने के लिए सक्षम हैं। ओपन जिम अगर उखड़ गई है तो उसे हम दिखवा लेते हैं। उसे दोबारा से सही से लगवा देंगे। रही बात मधुआ आदिवासी के घर अच्छे भोजन की व्यवस्था की तो अतिथि देवो भव: की परंपरा का निर्वहन करते हुए पंचायत सहित सभी लोगों ने मिलकर व्यवस्था की थी।
हिमांशु जैन
सीईओ, जिपं