महाराष्ट्र के सांगली से 8 आदिवासी मजदूर और उनके 7 बच्चे छुड़ाए गए, शिवपुरी प्रशासन और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई से हुई रिहाई

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शिवपुरी जिले के करेरा तहसील के ग्राम मुजरा के 8 आदिवासी मजदूरों और उनके 7 बच्चों को महाराष्ट्र के सांगली जिले में बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया गया। जिला प्रशासन और पुलिस की इस कार्रवाई से मजदूरों को गुलामी से आजादी मिली, जिसके बाद उनके गाँव में जश्न का माहौल है।


दलाल के झांसे में फंसे मजदूर - 


जानकारी के अनुसार, नरवर क्षेत्र के एक दलाल, जिसे भगतजी के नाम से जाना जाता है, ने इन आदिवासी मजदूरों को गुना में काम दिलाने का झांसा देकर महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक कृषि फार्म पर भेज दिया। वहाँ इन्हें बंधक बनाकर रखा गया और धमकी दी गई कि प्रति व्यक्ति 50,000 रुपये की अदायगी तक उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा।





सहरिया क्रांति के प्रयास से हुआ खुलासा - 


मामले का खुलासा तब हुआ जब सहरिया क्रांति संगठन के सदस्य ग्राम भ्रमण के दौरान इस अमानवीय कृत्य की जानकारी में आए। उन्होंने तुरंत अमोला थाने में शिकायत दर्ज कराई और  सहरिया क्रांति के संयोजक संजय बेचैन ने जिला कलेक्टर रवीन्द्र कुमार चौधरी को इस गंभीर स्थिति से अवगत कराया। कलेक्टर ने तत्काल कार्रवाई करते हुए सांगली जिले में एक पुलिस दल भेजा।


पुलिस और प्रशासन की संयुक्त कार्रवाई - 


महाराष्ट्र पुलिस और सांगली प्रशासन की मदद से सभी 15 बंधकों को सुरक्षित छुड़ाया गया। मुक्त कराए गए लोगों में बबलू, सुमन, रामेती, खेरू, उम्मेद, हरिबिलास, सुदामा, सपना और उनके 7 बच्चे शामिल हैं।


'हम नरक से लौटकर आए हैं': पीड़ित मजदूरों की आपबीती


मुक्त कराए गए मजदूरों ने बताया कि उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया था। एक महिला ने कहा, "हमें जानवरों से भी बदतर हालात में रखा गया। दिन-रात मजदूरी कराई जाती थी, खाने के लिए मुश्किल से एक वक्त का भोजन मिलता था। विरोध करने पर मारपीट और गालियाँ दी जाती थीं।"


गाँव में जश्न का माहौल - 


बंधुआ मजदूरी से मुक्त होकर वापस गाँव लौटे मजदूरों का स्वागत आदिवासी समुदाय ने ढोल-नगाड़ों के साथ किया। पूरे गाँव में खुशी का माहौल है।


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